भारत में जन प्रतिनिधियों और नव-नेतृत्व के समग्र-नेतृत्व विकास में बाधाएँ

Leadership Crisis

भारत में जन प्रतिनिधियों और नव-नेतृत्व के समग्र-नेतृत्व विकास में बाधाएँ

वर्तमान भारत में चुने हुए जन प्रतिनिधियों, उदयीमान स्थानीय नेतृत्व और भविष्य के राजनीतिक नव-नेतृत्व (emerging political leaders) के समग्र-नेतृत्व विकास के मार्ग में कई प्रमुख बाधाएँ हैं। ये बाधाएँ व्यक्तिगत, संस्थागत, सामाजिक, राजनीतिक और प्रणालीगत स्तरों पर मौजूद हैं। नीचे इन्हें श्रेणियों में बाँटकर संक्षेप में बताया गया है:

1. शैक्षणिक और बौद्धिक बाधाएँ

  • नेतृत्व विकास हेतु प्रशिक्षण की कमी: ग्राम स्तर से लेकर संसद तक, अधिकांश जन प्रतिनिधियों को नेतृत्व, प्रशासन, नीति-निर्माण, संवाद-कला आदि का कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिलता।
  • राजनीतिक शिक्षा की कमी: संविधान, लोकतांत्रिक मूल्यों, नीतियों की समझ, पंचायती राज व्यवस्था, बजट प्रक्रिया आदि की जानकारी का अभाव।
  • विकास और तकनीकी ज्ञान का अभाव: जैसे डिजिटल इंडिया, स्मार्ट गांव/शहर योजनाएं, जल प्रबंधन, शिक्षा सुधार आदि विषयों पर अधूरी समझ।

2. प्रणालीगत और संस्थागत बाधाएँ

  • पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की कमी: संस्थागत व्यवस्था में जवाबदेही के अभाव के कारण भ्रष्टाचार और अल्प-प्रभावशीलता।
  • विकेन्द्रीकरण का अधूरा क्रियान्वयन: ग्राम पंचायत, ब्लॉक और जिला स्तर पर योजनाओं व बजट के निर्णय में स्वतंत्रता नहीं होती।
  • राजनीतिक दलों की बंद संरचना: लोकतांत्रिक दलों में भी निर्णय लेने की प्रक्रिया शीर्ष नेतृत्व तक सीमित रहती है, जिससे नव-नेताओं को अवसर नहीं मिलता।

3. राजनीतिक संस्कृति संबंधी बाधाएँ

  • वंशवाद और पहचान आधारित राजनीति: योग्यता के बजाय जाति, धर्म या पारिवारिक विरासत को प्राथमिकता दी जाती है।
  • धनबल और बाहुबल का प्रभाव: चुनाव में जीतने के लिए पैसे और ताकत का व्यापक प्रयोग, जिससे योग्य लेकिन सीमित संसाधनों वाले उम्मीदवार पीछे रह जाते हैं।
  • अल्पकालिक सोच और जनहित की उपेक्षा: दीर्घकालिक विकास के बजाय तात्कालिक लाभ के लिए लोकलुभावन वादों पर जोर।

4. सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएँ

  • स्त्री और अल्पसंख्यकों की भागीदारी में बाधा: महिलाएं और सामाजिक रूप से वंचित वर्ग आज भी नेतृत्व में समुचित भागीदारी नहीं पा पाते।
  • जातिगत/धार्मिक ध्रुवीकरण: नेतृत्व विकास की प्रक्रिया को सामुदायिक पूर्वाग्रह प्रभावित करते हैं।
  • सामाजिक अपेक्षाओं और दबाव का प्रभाव: परिवार या समुदाय द्वारा राजनीति में सक्रिय भागीदारी को हतोत्साहित किया जाना।

5. सूचना और संसाधन की सीमाएं

  • डिजिटल साक्षरता की कमी: आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया, पोर्टल, ई-गवर्नेंस का उपयोग आवश्यक है लेकिन इसका समुचित ज्ञान नहीं होता।
  • नेटवर्किंग व संपर्क तंत्र की सीमाएँ: नव-नेताओं को सही मार्गदर्शन, मेंटरशिप और उच्च स्तरीय मंचों तक पहुँच नहीं मिलती।

6. मूल्य आधारित नेतृत्व का अभाव

  • जनसेवा की भावना का क्षरण: राजनीति को सेवा के बजाय करियर या व्यापार की दृष्टि से देखा जाना।
  • सत्यनिष्ठा व नैतिक मूल्यों का अभाव: व्यक्तिगत लाभ के लिए मूल्यों की अनदेखी।

समाधान की दिशा:

  • नेतृत्व विकास के लिए राजनीतिक प्रशिक्षण संस्थान (जैसे पंचायत स्तर तक) की स्थापना।
  • राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र को प्रोत्साहन।
  • महिलाओं व युवाओं के लिए आरक्षित नेतृत्व विकास कार्यक्रम।
  • ई-गवर्नेंस और डेटा आधारित प्रशासन का प्रशिक्षण।
  • सामाजिक नवाचार और लोक नीति अध्ययन के अवसर।

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